देहदृष्टि मे पूरा दुःख दूर करने कि ताक़त नहीं, आत्मदृष्टि से आदमी पूर्ण सूखी होता है। भगवान के समग्र स्वरूप का दर्शन जब तक नहीं हुआ, तब तक देहदृष्टि बनी रहती है । भगवान कहते हैं जो मुझे प्रीतिपूर्वक भजता है उसे मेरे समग्र स्वरूप का दर्शन होता है । जैसे सूर्य का प्रकाश- सूर्य कि सामान्य सत्ता तो सब जगह है , ऐसे ही.. सामान्य रुप से परमात्मा सब जगह है, और साक्षी रुप में वहाँ विशेष रुप में है।
जो जहाँ है वहाँ सुखी नहीं, तो वो वैकुण्ठ मे भी सुखी नहीं।
ज्ञान ही ज्ञान-२ (औडियो कैसेट से )
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